Thursday, March 20, 2014

होली में हुड़दंग!!!

आज के समय में सभी वर्ण के हिन्दू होली का उत्सव मनाते है, होली का नाम आते ही मस्तिष्क में आज के समय में जो प्रथम चित्र उभरता है वो  हुड़दंग का , टोलियां बना के रंगो -कीचड़ आदि से खेलने का , नशा किये हुए लोग , स्त्रियों के साथ  बदतमीजी करते लोग , लड़ाई झगड़ा करते हुए लोग ।

पर ऐसा भी नहीं कि सभी लोग ऐसा करते हैं कुछ लोग शांति पूर्वक भी होली मानते हैं , बेशक  संख्या  कम होती है । परन्तु जैसा भी माहौल में यदि कोई गौर करे तो जो सवर्ण बुजुर्ग होते हैं वो होली खेलना पसंद नहीं करते , अगर बहुत ज्यादा दबाब दिया जाये तो माथे पर गुलाल का टीका भर लगवा लेते हैं । आपको  यदि शोले फ़िल्म का वो दृश्य याद हो जिसमे ठाकुर ( संजीव कुमार) जया बहादुड़ी के घर जाता है तो रास्ते में जया बहादुड़ी उसे बताती है कि उसके पिता जो कि ठाकुर हैं वो केवल मिलने वालो से टीका ही लगवाते हैं होली नहीं खेलते ।
ऐसा क्यों , इसका जबाब है कि होली सवर्णो का नहीं अपितु शुद्रो का पर्व है । ऐसा शास्त्रो में लिखा है ,दंपति चतुर्थी नामक ग्रन्थ में चारो वर्णो के अनुसार उनके पर्व निश्चित किये गए हैं - श्रावणी उपकर्म( रक्षा बंधन) ब्राह्मण पर्व , विजय दशमी क्षत्रिय पर्व है , दीपावली वैश्य पर्व और होली शुद्र पर्व है ।

शुरू में यह पर्व मौसमी पर्व था जिसमे फसल कटने पर उत्साह के कारण इसको मनाया जाता था क्यों कि नया अन्न कट के घर आता था इसलिए इसे "नवान्नेष्टि " कहा जाता था । अन्नो से बने पकवानो को अपने इष्ट देवता को लोग अर्पित करते थे , इसके लिए भुने हुए जौ का भी खूब प्रयोग होता था इसलिए इसको "होलक "  भी कहा जाता था ।

परन्तु पौराणिकों ने इस  "होलक " पर्व को "होली " बना के एक हुड़दंगी और अश्लील पर्व बना दिया गया ,  इसकी कथा भविष्य पुराण में कही गयी   है - युधिष्टर कृष्ण से प्रश्न करता है कि फाल्गुन कि पूर्णिमा को यह कौन सा उत्सव मनाया जाता है ?  इसपर कृष्ण कहते हैं कि सत्ययुग में एक राजा थे जिनका नाम रघु था उनके राज्य में ढूंढा नाम कि एक राक्षसी ने बहुत आतंक मचा दिया था जिसके चलते उन्होंने नारद से इससे बचने का उपाय पूछा । नारद ने उपाय बताया कि आज फाल्गुन कि पूर्णिमा है और शरद ऋतू समाप्त हो गयी है , यदि राज्य के बच्चे लकड़ी कि तलवार लेके , प्रश्नता पूर्वक सुखी लकड़िया एकत्रित करे और विधिपूर्वक अग्नि जला के उसकी परिक्रमा करे और हँसे , गए , जिसके मुंह में जो आये वो बोले , गलियां दें तो वो राक्षसी भाग जायेगी ।
दक्षिणा मिले इसके लिए इसे पूजने का आदेश भी दिया गया ।

पौराणिकों आदेश के कारण कालांतर में इस पर्व का  स्वरुप हुड़दंग और अश्लिता में परिवर्तित हो गया , और शायद  इसी कारण इसे "शुद्रो"का पर्व कह दिया गया ।
तो सोचने कि बात है कि ' नवान्नेष्टि" को "होली" में परिवर्तित कर के लोगो को हुड़दंगी बनाने का दोष किसका है?